फिर जगी 25 साल से लंबित रेणुकाजी Dam के निर्माण की आस

चुनावी आहट मे फिर Media की सुर्खियां बना 26 KM लंबा बांध

 Budget मिलने पर मात्र 5 साल में बनेगा बांध

आगामी लोकसभा चुनाव में छः राज्यों में चर्चा में रहेगा डेम

छः CM व भारत सरकार के बीच हुए MOU से Project फिर सुर्खियों में

1,142 परिवारों के घर-बार, लाखों पेड़-पौधे व 2,100 हेक्टेयर भूमि निगल जाएगा मात्र 40 MW का प्रोजेक्ट

गिरी नदी मे गर्मियों मात्र 5 क्यूमेक्स पानी रहने से दिल्ली तक 23 क्यूमेक्स पानी पंहुचने पर उठे सवाल ?

 सिरमौर। राष्ट्रीय महत्व की रेणुकाजी बांध परियोजना के निर्माण को लेकर केंद्र सरकार तथा छः राज्यों के बीच MOU साइन होने से एक बार फिर 25 साल से लंबित उक्त Project के जल्द निर्माण की आस जगी है । 1,142 परिवारों के घर-बार, लाखों पेड़-पौधे तथा करीब 2,100 हेक्टेयर भूमि निगल जाने वाले मात्र 40 मेघवाट के इस प्रोजेक्ट का निर्माण कार्य वर्ष 1994 से आज तक शुरू नही हो सका। निर्माण कार्य शुरू न होने के मुख्य कारण Budget का अभाव, बांध से होने वाला संपत्ति का भारी नुकसान तथा विस्थापितों का विरोध आदि रहे। इस बांध का अन्वेषण कार्य 1984 में शुरू किया गया था तथा उस वक्त इसकी केवल लागत 1,200 करोड रूपए थी। उस दौरान Project Office रोहडू में शुरू हुआ जिसे बाद में अन्वेषण की सुविधा को देखते हुए रेणुकाजी के समीप ददाहू में शिफ्ट किया गया। वर्ष 2008 से 2010 तक सरकार द्वारा डूब क्षेत्र के 34 गांव की भूमि Section- 17 (4) लगाकर अधिग्रहण की गई। इस बांध से डूबने वाली 2100 Hectior भूमि में से लगभग 1200 हेक्टर Private व करीब 900 हेक्टर Forest Land है। 

 इस बांध के निर्माण से Himachal Pradesh, Delhi, हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश तथा उत्तराखंड राज्यों को पानी मिलेगा। इसी नदी पर 1970 के दशक से चल रही गिरी वैराज परियोजना जहां 60 MW/H बिजली पैदा कर रही है, वहीं बहुचर्चित Renukaji Dam से 40 मेगावाट प्रतिघंटा बिजली मिलेगी। इस बांध से दिल्ली तक 23 क्यूमेक्स पेयजल पहुंचाए जाने पर भी सवाल उठने लगे हैं, क्योंकि गर्मियों में गिरि नदी में मात्र 5 क्यूमेक्स के करीब पानी रहता है। परियोजना के अभियंताओं का तर्क है कि, 26 Kilometer लंबी झील से नदी का जलस्तर बढ़ेगा तथा इसके रिजर्वायर से भी कुछ दिन पानी चलेगा। जानकारी के मुताबिक इससे स्थानीय लोगों को सिंचाई के लिए भी पानी मिलेगा, हालांकि ऐसे में विद्युत उत्पादन कम हो सकता है। 148 मीटर ऊंचे इस बांध की करीब 26 किलोमीटर लंबी झील का नाम परशुराम सागर रखा जाना प्रस्तावित है। इस परियोजना पर वर्तमान लागत के मुताबिक करीब 4,597 करोड रुपए खर्च किए जाएंगे तथा 90 फीसदी अथवा 3,892 करोड़ केंद्र सरकार व्यय करेंगी। बांध के डूब क्षेत्र में आने वाले 34 गांव के अधिकतर किसानों को भूमि का मुआवजा दिया जा चुका है, हालांकि अब तक किसी भी विस्थापित परिवार का पुनर्वास होना शेष है। उक्त परियोजना के लिए अब तक प्राप्त करीब 700 करोड़ के कुल बजट में से लगभग 300 करोड़ विस्थापितों को जमीन का मुआवजा देने तथा 200 करोड़ के करीब investigation works पर खर्च हो चुका है। 


परियोजना को वन एवं पर्यावरण मंत्रालय से NOC मिल चुकी है तथा अब केवल पैसा न मिलना डैम लंबित रहने का मुख्य कारण बताया जा रहा है। बांध को Ministry of Forest and Environment की Second stage की एनओसी भी मिल चुकी है तथा वन विभाग को बांध की चपेट में आने वाले पेड़ों व वन भूमि का मुआवजा जमा करवाना शेष है। राष्ट्रीय महत्व के इस बांध को Government of Indian से 90 फीसदी बजट मिलना है तथा मामला केंद्रीय कैबिनेट से पास होने के बाद ही उक्त बजट जारी हो सकेगा। बांध से विस्थापित होने वाले 1142 से अधिक परिवारों की समस्याओं के मामले को लेकर वर्ष 2008 से 2011 तक बांध जन संघर्ष समिति, जन सहयोग समिति व आजीविका बचाओ समिति आदि संगठनों द्वारा कईं बार विरोध प्रदर्शन भी किए गए तथा इस दौरान Police ने प्रदर्शनकारियों के खिलाफ Case भी दर्ज किए। आजीविका बचाओ समिति द्वारा पर्यावरण प्रदूषण के मामले में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में केस भी किया गया, हालांकि बाद में फैसला रेणुका बांध प्रबंधन अथवा हिमाचल सरकार के हक में आया। पर्यावरण संबंधी एनओसी मिलने के बाद हिस्सेदारी को लेकर अपर यमुना बेसिन के राज्य हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, हरियाणा व दिल्ली के बीच विवाद पैदा हो गया था। केन्द्र सरकार के हस्तक्षेप से इस विवाद का निदान हो गया है। केन्द्र ने बांध के निर्माण में 90 फीसदी खर्च देना स्वीकार कर लिया है। विद्युत उत्पादन पर आने वाला करीब 270 करोड़ का खर्च खर्च दिल्ली सरकार वहन करेगी। इस बांध में पैदा होने वाली बिजली पर हिमाचल प्रदेश का अधिकार होगा तथा राज्य इस पर लगभग 432 करोड़ रुपए खर्च करेगा। परियोजना के जल पर दिल्ली, हरियाणा और उत्तराखंड की हिस्सेदारी होगी। बहरहाल छः राज्यों के मुख्यमंत्रियों व केन्द्रीय मंत्री नितिन गडकरी के बीच हाल ही में हुए एमओयू तथा Parliament election नजदीक होने के चलते एक बार फिर बांध निर्माण की उम्मीद जगी है, हालांकि बजट मिलने के बाद ही निर्माण कार्य शुरू किया जा सकता है।

Comments

  1. रेणुका बांध परियोजना का निर्माण नहीं हो सकता चाहे जितना मर्जी जोर लगा लें।शारा एसोसिएशन शुरू से ही इस परियोजना का विरोध कर रहे हैं।इतने कम पानी में भारी भरकम राशि खर्च करना बेवकूफी का काम हैं।इस बांध से पांच लाख पक्षी व जीव जंतु प्रभावित होने हैं जिनके पुनर्निर्माण का जमीनी स्तर पर प्रावधान नहीं किया गया हैं।

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