सिरमौर का शाही व सबसे खर्चीला माघी त्यौहार शुरू

हर साल कटते हैं करीब 40 हजार बकरे 
 4 दिन चलने वाले माघी  Festival के चलते बसों व बाजारों में भारी भीड़

मीट कारोबारियों द्वारा पड़ोसी राज्यों से भी उपलब्ध करवाए गए बकरे
                             (File Photos)

 सिरमौर जनपद की सदियों पुरानी लोक संस्कृति व परंपराओं को संजोए रखने के लिए मशहूर गिरिपार क्षेत्र का सबसे शाही तथा खर्चीला कहलाने वाला माघी त्यौहार शुक्रवार को परम्परा के अनुसार शुरू हो गया। खड़ियांटी, डिमलांटी/घिडांटी, उत्तरांटी/ होथका व साजा आदि नामो से 4 दिन तक चलने वाले इस पर्व को Greater Sirmaur की 130 के करीब पंचायतों में काफी हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले विकास खंड संगड़ाह, शिलाई व राजगढ़ में इस दौरान लगभग हर गांव में बकरे काटे जाते हैं तथा अलग अलग दिन विभिन्न शाकाहारी तथा  Non Veg पारंपरिक व्यंजनों का दौर चलता है। क्षेत्र के दो दर्जन के करीब गांव में हालांकि लोग Bakre काटने की परंपरा को छोड़ चुके हैं, मगर 95 फीसदी के करीब गांव में यह की परम्परा कायम है। 

 विभिन्न NGO से प्राप्त जानकारी के अनुसार माघी त्यौहार पर हर साल Trans-Giri zone में करीब 40,000 बकरे कटते हैं। इस बारे अब तक सरकारी स्तर पर कोई Survey नहीं हुआ। एक बकरी की औसत कीमत 15 हजार रुपए रखे जाने पर केवल बकरों पर ही करीब 60 करोड खर्च आता है। Vegetarian सिरमौरी Dishes पर आने वाला खर्च इसके अतिरिक्त है। इस भारी-भरकम खर्च के चलते ही इस Festival को शाही अथवा साल का सबसे खर्चीला त्योहार कहा जाता है। प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री का विधानसभा क्षेत्र रहे ग्रेटर सिरमौर अथवा गिरिपार से संबंध रखने वाले प्रशासनिक अधिकारी, राजनेता, डॉक्टर, वकील, पत्रकार व बिजनेसमैन आदि प्रतिष्ठित लोगों के घरों में भी बकरे कटते हैं। 

 क्षेत्र के बुजुर्गों तथा साहित्यकारों के मुताबिक प्राचीन काल में यहां अधिकतर ग्रामीण अपनी भेड़ बकरियां पालते थे तथा आज भी इलाके के अधिकांश दूरदराज के इलाकों में हिमपात अथवा सर्दियों के दौरान ताज़ा पौष्टिक आहार उपलब्ध नहीं हो पाता। इन्ही कारणों से संभवत यह परम्परा शुरू हुई। करीब ढ़ाई लाख की आबादी वाले इस इलाके के अनेक परिवार शाकाहारी भी हैं, मगर आज भी इलाके में ज्यादातर आबादी नान वेज के शौकीन लोगों की है। अपने पशु अथवा बकरियां न पालने वाले आर्थिक दृष्टि से कमजोर लोग माघ मास में अपने अथवा मेहमानों के लिए ताज़ा Mutton खरीदते हैं। इस दौरान अलग अलग दिन असकली, मूड़ा, आटा, तेलपाकी, पूड़े, डोली, राड़ मीट, सीड़ो, खोबले व पटांडे आदि  पारंपरिक व्यंजन परोसे जाते हैं। चावल, गैंहू, चोलाई, भांग बीज, अखरोट, सूखे मेवों व तिल आदि से तैयार होने वाला सूखा सिरमौरी व्यंजन मूड़ा इस त्यौहार में विशेष तौर पर मेहमानों अथवा रिश्तेदारों को परोसा जाता है। इस त्यौहार पर कटने वाले बकरों का मीट नमक व हल्दी लगाकर संरक्षित किया जाता है तथा पूरे माघ महीनों में मेहमान नवाजी का दौर चलता है। माघी की दावतों के दौरान कुछ स्थानों पर नाटी अथवा लोक नृत्य का दौर भी चलता होता है तथा कुछ लोग जाम छलकाने से भी नही चूकते। 

Local बकरे कम पड़ने के चलते इस बार भी मीट कारोबारियों द्वारा देहरादून, दिल्ली, सहारनपुर, नोयडा तथा जयपुर आदि से लाकर इस त्यौहार के लिए बकरे उपलब्ध करवाए गए। माघी त्यौहार के लिए अतिरिक्त बसों की व्यवस्था न होने के चलते मौजूदा Buses में भारी Overloading देखी जा रही है तथा Festival season के चलते बाजारों में भी काफी रोनक है। बहरहाल क्षेत्र में चार दिन तक चलने वाला माघी त्योहार शुरू हो चुका है।

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