गिरिपार में पारंपरिक अंदाज में मनाया गया गुगावल पर्व
मुग़ल सल्तनत की जेल से शिरगुल देवता को करवाया था आजाददेवभूमि हिमाचल के गिरीपार क्षेत्र में यूं तो हिंदुओं के कईं Festival अलग अंदाज में मनाएं जाते हैं, मगर क्षेत्र में मनाई जाने वाली गुगावल पर भक्तों द्वारा खुद को Steel Chains से पीटे जाने की परंपरा काफी खतरनाक व Romantic समझी जाती है। क्षेत्र के दर्जनों गांवों में शनिवार को गुगावल अथवा गुगा नवमी उत्सव Traditional अंदाज में मनाया गया। इस बार जन्माष्टमी पर दो मत के चलते कुछ area में यह उत्सव रविवार को मनाया गया। गुगा नवमी की पूर्व संध्या अथवा श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की रात माड़ी कहलाने वाले एक मंजिला गूगा मंदिरों में भक्ति गीतों के साथ शुरू हुआ उक्त पर्व सायं सूरज ढलने के तक चला।
करीब अढ़ाई लाख की आबादी वाले गिरिपार के Civil Subdivision संगड़ाह, शिलाई व राजगढ़ की 130 के करीब पंचायतों में देवभूमि हिमाचल के इस अनूठे धार्मिक उत्सव को धूमधाम से मनाया जाता है। इस दौरान क्षेत्र के लगभग सभी बड़े गांव में दो दर्जन के करीब गूगा भक्त अथवा श्रद्धालु खुद को लोहे की जंजीरों से पीटते हैं। Steel chains से बने गुगा पीर के अस्त्र समझे जाने वाले कौरड़े का वजन आमतौर पर 2 किलो से 10 Kilogram तक होता है, जिसे आग अथवा धूने में गर्म करने के बाद श्रद्धालु इससे खुद पर दर्जनों वार करते हैं।
गुगावल शुरू होने पर गारुड़ी कहलाने वाले पारंपरिक लोक गायकों द्वारा छड़ियों से बजने वाले विशेष डमरु की ताल पर गुगा पीर, शिरगुल देवता, रामायण व महाभारत आदि वीर गाथाओं का गायन किया जाता है। गुगा पीर स्तूति अथवा शौर्य गान शुरू होते ही भक्त खुद को जंजीरों से पीटना शुरु कर देते हैं तथा इस दौरान कईं भक्त लहूलुहान अथवा घायल भी होते भी देखे जाते हैं। गूगावल गिरिपार का एकमात्र त्यौहार है, जो जातिगत बंधनों से ऊपर उठकर मनाया जाता है। इस Festival में रोट कहलाने वाला देवता का प्रसाद सभी Caste व धर्म के Devotees में बराबर बिना भेदभाव के बांटा जाता है।
लोक गाथा के मुताबिक बागड़ राजस्थान के गूगा महाराज द्वारा शिरगुल देवता को Delhi की मुग़ल सल्तनत की क़ैद से आजाद करवाया गया था। इसके अलावा भी उनकी कईं अन्य शौर्य गाथाओं का गायन इस उत्सव के दौरान होता है। इस बार जन्माष्टमी अथवा कृष्ण जन्म की घड़ी को लेकर बनी भ्रामक स्थिति के चलते कुछ गांव में रविवार को भी उक्त त्यौहार मनाया जाएगा। गिरिपार में गूगा नवमी पर जहां श्रद्धालु खुद को लोहे की Chain व नुकीली पत्तियों से बने कोरड़े से पीटते हैं, वहीं महासू पंचमी पर भक्त आग में कूदते हैं। क्षेत्र में बूढ़ी दिवाली दीपावली के एक माह बाद मनाई जाती है, तो माघी अथवा लोहड़ी पर एक साथ 40 हजार के करीब बकरे कटते हैं।
गिरिपार में एक सप्ताह पहले से गुगा पीर की छड़ी यात्रा अथवा परिक्रमा के साथ गुगावल की तैयारियां शुरू हो जाती है तथा यह क्षेत्र का एक प्रमुख धार्मिक उत्सव है। शनिवार को विकास खंड संगड़ाह, शिलाई व राजगढ़ में गुगावल पारंपरिक अंदाज में मनाई गई। अनूठे हिमाचल के शेष भारत से अलग अंदाज में मनाए जाने वाले त्यौहारों में शामिल गूगावल में देवता के प्रति समर्पण का भाव भी देखने को मिलता है।
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