11 बरस से Rehabilitation की बाट जोह रहे 34 गांव के विस्थापित

2008 में भूमि अधिग्रहण के बाद से डूब क्षेत्र में Developmental activities व निर्माण कार्यों पर रोक
 Delhi को पेयजल उपलब्ध करवाने के लिए बनाए जा रहे 26 किलोमीटर लंबे रेणुकाजी Dam के डूब क्षेत्र में आने वाले 34 गांव के 1142 के करीब विस्थापित परिवारों की परेशानियां पिछले 11 साल से लगातार बढ़ती जा रही है। सरकार अथवा HPPCL द्वारा वर्ष 2008 में बांध से डूबने वाली भूमि को Section- 17 (4) के माध्यम से कब्जे में लिए जाने के बाद अब तक एक भी उजड़ने वाले परिवार को rehabilitate नही किया गया है। डूब क्षेत्र की करीब 2,100 हेक्टेयर जमीन में से 1100 Hector के लगभग Private Land को आवश्यक भूमि अधिग्रहण अधिनियम के माध्यम से सरकार द्वारा acquire किए जाने के बाद इस क्षेत्र में विभिन्न सरकारी विकासात्मक गतिविधियों पर नियमानुसार प्रतिबंध लग चुका है। 

 उक्त प्रतिबंध लगने के चलते जहां लोगों से मनरेगा जैसे Employment अथवा मजदूरी के साधन छिन गए हैं, वहीं सैंकड़ों किसान अचल संपत्ति से महरूम हो गए। इस इलाके में 11 वर्ष से न केवल सड़क, विद्युत लाइन तथा पेयजल योजनाओं जैसे विकास कार्य बंद है, बल्कि नियमानुसार लोग अपने लिए घर बनाने जैसे निर्माण कार्य भी नही कर सकते हैं। डूब क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले दर्जनों खेतिहर मजदूर परिवार ऐसे हैं, जिनके नाम दो गज जमीन भी न होने के चलते उन्हें कानूनन मुआवजा नहीं मिल सका। जिस जमीन पर उक्त दलित समुदाय से संबंध रखने वाले गरीब परिवार खेती करते थे, वह जमींदारों अथवा अन्य लोगों के नाम पर थी तथा विद्युत विभाग अथवा Government of Himachal Pradesh द्वारा भू-स्वामियों को ही नियमानुसार मुआवजा दिया गया।
  डूब क्षेत्र के परिवारों में से अधिकतर छोटे किसान है, जिन्हें अपनी पुश्तैनी जमीन व घरों को इस परियोजना के लिए खाली करना पड़ रहा है। डूब क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले सबसे बड़े गांव सीऊं के गिरि व पालर दो नदियों के बीच होने के बावजूद यहां सेक्शन चार लागू होने के चलते संबंधित अधिकारियों के अनुसार पुल निर्माण नहीं हो सकता। नदियों में पानी बढ़ने पर हालांकि स्वस्थ एवं युवा ग्रामीण रस्सी अथवा तार-झूला से नदी पार करने में कामयाब हो जाते हैं, मगर बुजुर्ग, बीमार, बच्चे व दिव्यांग कैद होकर रह जाते हैं। 
 Civil Subdivision संगड़ाह के अंतर्गत आने वाले इस गांव के किसानों को पुरानी दरों के मुताबिक मिली मुआवजा राशि भी काफी परिवारों के पास पिछले एक दशक में खर्च हो गई है। शुक्रवार को रेणुकाजी डेम के Senior Manager सुनील गुप्ता की मौजूदगी में सींऊ में हुई बैठक में विस्थापितों ने मौजूदा शर्तों व परिस्थितियों के मुताबिक विस्थापन संबंधी इच्छा पत्र पर हस्ताक्षर करने से इन्कार कर अपना विरोध जताया। रेणुकाजी बांध के लिए अब तक सरकार द्वारा वांछित Budget उपलब्ध न कराए जाने तथा गिरि का जल स्तर लगातार घटने के चलते इस बात का भी पता नहीं कि, वर्ष 1994 से प्रस्तावित इस बहुउद्देशीय परियोजना का वास्तविक निर्माण कार्य अब शुरू होगा। 
 विस्थापितों द्वारा गठित बांध संघर्ष समिति द्वारा मुआवजे, रोजगार व पुनर्वास जैसी मांगों को लेकर हांलांकि वर्ष 2011 व 2012 में दर्जन भर massive Protest किए गए, मगर इसके बाद मुआवजा राशि मिलने के के बाद आंदोलन ठंडा पड़ गया। Renukaji Dam के डूब क्षेत्र के गरीब किसान अथवा विस्थापितों को कब और कहां भेजा जाएगा इसको लेकर भी क्षेत्र में चिंता ‌व उदासी का माहौल बरकरार है। विस्थापित संघर्ष समिति के अध्यक्ष योगेंद्र कपिला ने अब तक एक भी विस्थापित परिवार का पुनर्वास न होने तथा उन्हें रोजगार व उचित मुआवजा न दिए जाने पर नाराजगी जताई। 

उन्होंने कहा कि, पुनर्वास के लिए बिचौलियों के माध्यम से खरीदी गई Land भी रहने लायक नही है तथा हिमाचल सरकार द्वारा इस खरीद में हुई गड़बड़ी की vigilance Enquiry भी करवाई गई है। इस बारे स्थानीय प्रशासन व बांध प्रबंधन के अधिकारियों का तर्क है कि, विस्थापितों को मुआवजा दिया जा चुका है तथा बांध बनने से पहले उनका पुनर्वास हो जाएगा। विस्थापितों के दर्द को लेकर उपमंडल संगड़ाह के मूल निवासी मेला राम शर्मा द्वारा बनाई गई डॉक्यूमेंट्री "In The Twilight Zone" को हिमाचल की Best State documentary Film का ईनाम मिल चुका है। पूर्ण चंद शर्मा तथा विजय आजाद आदि विस्थापितों ने यहां जारी बयान में कहा कि, आगामी 12 नवंबर को अपनी समस्याओं को लेकर विस्थापित संघर्ष समिति का प्रतिनिधिमंडल Chief Minister से मिलेगा।

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