संगड़ाह। उपमंडल मुख्यालय संगड़ाह में संबंधित अधिकारियों, ठेकेदार तथा प्रदेश सरकार की लापरवाही से 10 साल मे भी अस्पताल भवन तैयार नही हो सका। गत वर्ष इस भवन के लिए एक करोड़ का अतिरिक्त बजट मिल चुका है, मगर लोक निर्माण विभाग के अनुसार स्वास्थय विभाग द्वारा 2 करोड़ का रिवाइज्ड बजट जारी किया जाना बाकी है। पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल द्वारा 13 अक्टूबर 2011 को संगड़ाह अस्पताल भवन का शिलान्यास किए जाने के बावजूद अब तक उक्त भवन मरीजों के काम नहीं आ सका। शुरुआती सात वर्षों तक जहां उक्त भवन राजस्व व लोक निर्माण विभाग के अधिकारियों तथा ठेकेदार की बदौलत लंबित रहा, वहीं अब स्वास्थ्य निदेशालय से 2 करोड़ का रिवाइज्ड बजट न मिलने के चलते निर्माण कार्य लटक गया है। PWD के संबंधित अधिकारियों के अनुसार अस्पताल भवन का 90% काम पूरा हो चुका है तथा यहां बिजली पानी, लिफ्ट व फिनिश जैसे छोटे मोटे कार्य शेष है। लोक निर्माण विभाग के अधिशासी अभियंता संगड़ाह रतन शर्मा ने बताया कि, स्वास्थ्य विभाग द्वारा अस्पताल भवन के लिए करीब दो करोड़ का रिवाइज्ड बजट जारी किया जाना शेष है। उन्होंने कहा कि, उक्त भवन का रिवाइज्ड एस्टीमेट स्वास्थय निदेशक को भेजा जा चुका है तथा बजट मिलने पर दो माह के भीतर यहां बिजली, पानी व लिफ्ट की व्यवस्था तथा Finishing जैसे काम पूरे किए जा सकते हैं।
सिरमौर में 100℅ 1st dose Covid Vaccination का लक्ष्य पूरा
DC सिरमौर राम कुमार गौतम ने कहा कि, जिला में कोरोना टीकाकरण अभियान के तहत पहली डोज का सौ फीसदी लक्ष्य पूरा कर लिया गया है। जिला में अब तक 18 वर्ष से अधिक आयु वर्ग के सभी लोगों को कोरोना की पहली डोज लग चुकी है। DC ने कहा कि, वर्तमान में 3.96 लाख लोगों को पहली डोज लगाई जा चुकी है।
गिरिपार में गुगावल पर्व मे लोहे की जंजीरों के कोरड़े से पीटे भक्तसंगड़ाह। सिरमौर जिला के गिरीपार क्षेत्र में यूं तो हिंदुओं के कईं मुख्य त्यौहार अलग अंदाज में मनाएं जाते हैं, मगर क्षेत्र में मनाई जाने वाली Gugwal पर भक्तों द्वारा खुद को लोहे की जंजीरों से पीटे जाने की धार्मिक परंपरा काफी रोमांचक समझी जाती है। गुगा नवमी की पूर्व संध्या पर माड़ी कहलाने वाले एक मंजिला गूगा मंदिरों में भक्ति गीतों के साथ शुरू होने वाला उक्त पर्व नवमी की शाम सूरज ढलने तक परंपरा के अनुसार मनाया जाता है। करीब अढ़ाई लाख की आबादी वाले गिरिपार के उपमंडल संगड़ाह, शिलाई व राजगढ़ की 130 के करीब पंचायतों में मंगलवार प्रातः करीब 11 बजे शुरू हुआ यह त्यौहार शाम सूरज ढलने तक चलता है। इस दौरान क्षेत्र के लगभग सभी बड़े गांव में दो दर्जन के करीब गूगा भक्त अथवा श्रद्धालु खुद को लोहे की जंजीरों से पीटते हैं। लोहे की जंजीरो से बने गुगा पीर के अस्त्र समझे जाने वाले कौरड़े का वजन आमतौर पर 2 किलो से 10 किलोग्राम तक होता है, जिसे आग अथवा धूने में गर्म करने के बाद श्रद्धालु इससे खुद पर दर्जनों वार करते हैं। गुगावल शुरू होने पर गारुड़ी कहलाने वाले पारंपरिक लोक गायकों द्वारा छड़ियों से बजने वाले विशेष डमरु की ताल पर गुगा पीर, शिरगुल देवता, रामायण व महाभारत आदि वीर गाथाओं का गायन किया जाता है। गुगा पीर स्तूति अथवा शौर्य गान शुरू होते ही भक्त खुद को जंजीरों से पीटना शुरु कर देते हैं तथा इस दौरान कईं भक्त लहूलुहान अथवा घायल भी होते भी देखे जाते हैं। गूगावल गिरिपार का एकमात्र त्यौहार है, जो जातिगत बंधनों से ऊपर उठकर मनाया जाता है तथा रोट कहलाने वाला देवता का प्रसाद स्वर्ण व हरिजनों में बराबर बिना छुआछूत व भेदभाव के बांटा जाता है। गूगा नवमी पर जहां श्रद्धालु खुद को लोहे की चेन व नुकीली पत्तियों से बने कोरड़े से पीटते हैं, वहीं महासू पंचमी पर भक्त आग में कूदते हैं। मंगलवार को क्षेत्र मे यह धार्मिक त्यौहार पारम्परिक अंदाज़ मे मनाया गया।
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