आज भी Nomadic जीवन बिता रहे हैं गुज्जरों के सैंकड़ों परिवार

मवेशियों के साथ पहाड़ी जंगलों में Summer visit पर पहुंचे सिरमौरी गुज्जर 
 Information technology के इस दौर में बेशक कुछ लोग चांद और मंगल ग्रह पर घर बनाने का सपना देख रहे हों, मगर इसी दुनिया में कुछ समुदाय ऐसे भी हैं, जो अपने लिए 2 गज जमीन व सिर पर छत की व्यवस्था नही कर पाए। ऐसा ही एक समुदाय सिरमौरी गुजरों का भी है, जो अब तक खानाबदोश जैसा जीवन जी रहे हैं। आधुनिकता की चकाचौंध से कोसों दूर अपने Cattles के साथ जंगल-जंगल घूम कर मस्ती से जीवन यापन करने वाले सिरमौरी गुज्जर Community के लोग इन दिनों मैदानी इलाकों से गिरिपार अथवा जिला के पहाड़ी क्षेत्रों के छः माह के प्रवास पर निकल चुके हैं।
 Greater Sirmaur क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले उपमंडल संगड़ाह, राजगढ़ व शिलाई के पहाड़ी जंगलों में सदियों से मई महीने में उक्त समुदाय के लोग अपनी भैंस, गाय, बकरी व भारवाहक बैल आदि मवेशियों के साथ गर्मियां बिताने पहुंचते हैं। सितंबर माह में ग्रेटर सिरमौर अथवा गिरिपार में ठंड शुरू होने पर यह लौट जाते हैं तथा गंतव्य तक पहुंचने में इन्हे करीब एक माह का समय लग जाता है। इनके मवेशियों के सड़क से निकलने के दौरान क्षेत्र की तंग सड़कों पर वाहन चालकों को कईं बार जाम की समस्या से जूझना पड़ता है।
 हिमाचली साहित्यकारों व इतिहासकारों के अनुसार सिरमौरी गुज्जर छठी शताब्दी में Central Asia से आई हूण जनजाति के वंशज है, जिन्हें मगध व मालवा के शासकों ने हिमाचल व जम्मू-कश्मीर की तरफ खदेड़ दिया था। साहित्यकारों के मुताबिक तब से उक्त समुदाय ने जंगलों में ही जीवन यापन को अपने Life style के रूप में अपना लिया। इस समुदाय का Social media, मीडिया, Politics, औपचारिक शिक्षा, Internet व Android phone आदि से नजदीक का नाता नहीं है, हालांकि पिछले दशक से गुज्जर समुदाय के कुछ लोग केवल बातचीत करने के लिए मोबाइल फोन का इस्तेमाल करने लगे हैं। इनके कुछ बच्चे Mobile Schools भी जाने लगे हैं। 
 गुज्जर समुदाय के अधिकतर परिवारों के पास अपनी जमीन अथवा आवास नहीं है, हालांकि कुछ परिवारों को Government of Himachal Pradesh द्वारा पट्टे पर जमीन उपलब्ध करवाई गई है। कुछ दशक पहले तक अनाज के बदले दूध देने वाले उक्त समुदाय के लोग अब अपने मवेशियों की बदौलत दूध, मक्खन, खोया तथा घी आदि Milk Products बेच कर अपना जीवन यापन करते हैं। जिला में यह एकमात्र अनुसूचित जनजाति का घुमंतू समुदाय है तथा इनकी Population मात्र दो हजार के करीब है। Block Elementary Education Officer संगड़ाह के अनुसार घुमंतू गुज्जर समुदाय के बच्चों को लिए चलाए जा रहे विशेष मोबाइल स्कूलों मे इन छात्रों को अन्य Students से ज्यादा सुविधाएं सरकार द्वारा मुहैया करवाई जा रही है। 

  सामान्य छात्रों के लिए जहां केवल वर्दी व Mid day Meal की ही व्यवस्था है, वहीं अनुसूचित जनजाति से संबंध रखने वाले गुज्जर समुदाय के बच्चों को इसके अलावा पहले से ही जूते व School Bag आदि भी निशुल्क मुहैया करवाए जाते हैं। जंगलों में परिवार के साथ जिंदगी बिताने के दौरान न केवल उक्त Community के लोगों के अनुसार उन्हें प्राकृतिक आपदाओं का सामना करना पड़ता है, बल्कि कईं बार जंगली जानवरों, स्थानीय लोगों व संबंधित कर्मियों की बेरुखी का भी सामना करना पड़ता है। जिला के पांवटा-दून, नाहन व गिन्नी-घाड़ आदि मैदानी क्षेत्रों से चूड़धार, उपमण्डल संगड़ाह अथवा गिरिपार के जंगलों तक पहुंचने में उन्हें करीब एक माह का Time लग जाता है। पहाड़ों का गृष्मकालीन प्रवास पूरा होने के बाद उक्त घुमंतू समुदाय अपने Cattles के साथ मैदानी इलाकों के अगले छह माह के प्रवास पर निकल जाएगा और इसी तरह इनका पूरा जीवन बीत जाता है।

Comments

  1. रिपोर्टर हो तो आप जैसा भाई जो जमीनी स्तर के मुद्दे को उठाते हैं

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  2. Most Indian students prefer MBBS in Kyrgyzstan due to its low fee package but there are also some disadvantages of studying MBBS in Kyrgyzstan such as students can pursue MBBS from Ukraine or Russia in the same budget approx. INR 22-25 lakh rather than in Kyrgyzstan, average quality of education, cold climate, universities are overcrowded etc.

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