डॉ कुलदीप तंवर ने की सैंकड़ों बंदर मारने वाले किसानों की सराहना
किसान सभा राज्य अध्यक्ष बोले बंदरों के मुद्दे पर गंभीर नहीं है Governmentकिसान सभा के राज्य अध्यक्ष डॉ कुलदीप तंवर ने हिमाचल सरकार अथवा Forest Dipartmet से बंदर मारने में किसानों का सहयोग करने की अपील की। डॉ तंवर ने पिछले चार माह में सैकड़ों बंदरों को दवाएं देकर मारने वाले जिला सिरमौर के उपमंडल संगड़ाह, शिलाई व राजगढ़ के किसानों की सराहना की तथा सरकार द्वारा इस कार्य में मदद न किए जाने पर नाराजगी जताई। वन विभाग में बतौर वरिष्ठ IFS अधिकारी सेवाएं दे चुके डॉ तंवर ने कहा कि, हिमाचल सरकार द्वारा लगातार तीसरी बार एक साल के लिए पीड़क जंतु घोषित किए जा चुके बंदरों को मारने के लिए सरकारी स्तर पर अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है।
डॉ तंवर ने कहा कि, हिमाचल की कुल 3226 में से 2301 पंचायतों में आतंकी बंदर किसानों को खेती छोड़ने पर मजबूर कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि, बंदरों की नसबंदी व पुनर्वास के नाम पर करोड़ों रुपए खर्च कर प्रदेश सरकार हालांकि सूबे में अब इनकी संख्या मात्र तीन लाख के करीब बता रही है, मगर किसान सभा द्वारा 2301 पंचायतों से जुटाए गए आंकड़ों के अनुसार इनकी संख्या पांच लाख के करीब है। उन्होंने वन विभाग द्वारा की जा रही नसबंदी को समस्या का समाधान नहीं बताते हुए कहा कि, वास्तव में किसानों द्वारा दी जा रही चूहे मारने की दवा इनकी कलिंग अथवा खात्मे की बेहतरीन तरकीब है। किसान सभा ने सरकार अथवा वन विभाग से किसानों को Money मारने का प्रशिक्षण देने तथा मरे हुए बंदरों की Body Dispose off करने की व्यवस्था की अपील की। भारतीय वन सेवाएं अधिकारी रह चुके डॉ कुलदीप तंवर में कहा कि, वन वन्य प्राणी संरक्षण अधिनियम 1972 के तहत बंदरों को पीड़क जंतु घोषित किया गया था। पहले Vermin जंतु भाग 2 में रखे गए बंदरों को बाद में शेड्यूल 5 में शामिल किया गया है।
2007 में किसानों ने 419 बंदरों को मारी थी गोली
विभिन्न संगठनों द्वारा गठित खेती बचाओ समिति की पहल के बाद वर्ष 2007 में उपमंडल संगड़ाह के किसानों ने 419 बंदरों को अपनी बंदूकों से मार गिराया था। किसान संगठनों के प्रर्दशनों अथवा दबाव के बाद उस दौरान सरकार द्वारा न केवल बंदरों को मारने की अनुमति दी गई थी, बल्कि नौहराधार रैंज अथवा उपमंडल संगड़ाह के कुछ लाइसेंस शुदा बंदूकधारक किसानों को बारूद अथवा असलाह खरीदने का खर्चा भी दिया गया था। इस दौरान उपमंडल संगड़ाह में 11 से 17 जुलाई 2007 तक जहां सरकारी स्तर पर बंदर मारने के लिए ऑपरेशन कलिंग चलाया गया था, वही इसके बाद अगस्त माह में किसानों द्वारा अपने स्तर पर बंदर मारे गए थे। 419 बंदर मारे जाने संबंधी Reports Media की सुर्खियों में आने के बाद केंद्रीय मंत्री एवं पर्यावरण प्रेमी मेनका गांधी की संस्था के हस्तक्षेप के बाद वन विभाग द्वारा बंदर मारने पर पाबंदी लगाई गई थी।
बंदरों के आतंक से मुक्त हुई गिरिपार की दर्जनों पंचायतें
जिला सिरमौर के गिरिपार क्षेत्र अथवा उपमंडल संगड़ाह, राजगढ़ व शिलाई की दर्जनों पंचायतों के किसानों द्वारा प्रदेश सरकार की अनुमति मिलने के बाद अपने स्तर पर बंदरों को मारने का अभियान शुरू किया गया है। जानकारी के मुताबिक अधिकतर किसान चूहे मारने की जहरीली दवा खेत में रखकर बंदरों को मार रहे हैं, हालांकि अब तक किसान गुपचुप तरीके से यह काम कर रहे हैं। उपमंडल संगड़ाह के कईं किसानों के अनुसार इस बार उन्हे मक्की अथवा खरीफ की फसल को बंदरों से कोई नुकसान नहीं पहुंचा। कुछ गांव में तो बंदर देखने को भी नहीं मिल रहे हैं। किसानों सभा के जिला सिरमौर इकाई के अध्यक्ष रमेश वर्मा ने प्रदेश सरकार द्वारा बंदर मारने में सहयोग न किए जाने पर नाराजगी जताई। उन्होंने कहा कि, किसान सभा अथवा विभिन्न संगठनों द्वारा उक्त मुद्दा उठाए जाने के बाद पिछले तीन विधानसभा Election में लगातार प्रदेश के प्रमुख राजनीतिक दलों द्वारा बंदरों के आतंक से मुक्ति दिलाने का वादा किया जा हैं, मगर सत्ता मिलने के बाद सरकार द्वारा इस बारे ठोस कदम नहीं उठाए जाते। रमेश वर्मा ने सरकार व वन विभाग से से किसानों को बंदर मारने के लिए 500 रूपए प्रति बंदर खर्चा देने की अपील की। उन्होंने कहा कि, वन विभाग द्वारा बाहरी राज्यों से लाई जा रही Teams को बंदर पकड़ने के लिए 500 रूपए प्रति बंदर incentive दिया जा रहा है तथा इस कार्यक्रम पर करोड़ों रुपए की राशि खर्च हो चुकी है।
किसानों को वर्मिन जंतु घोषित बंदर मारने का कानूनी हक: अरण्यपाल
वन विभाग के अरण्यपाल नाहन ने इस बारे पूछे जाने पर कहा कि, प्रदेश सरकार द्वारा एक बार फिर एक साल के लिए बंदरों को वर्मिन जंतु घोषित करवाया गया है। सरकार के इस निर्णय के चलते किसानों की फसल को नुकसान पहुंचा रहे बंदरों को मारने का हक हैं। उन्होंने कहा कि, 500 रुपए की निर्धारित राशि केवल बंदर पकड़ने वालों को बतौर मजदूरी अथवा इंसेंटिव दी जाती है। सरकार द्वारा अब तक बंदर मारने के लिए इस तरह की कोई राशि निर्धारित नहीं की गई है।
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