Greater सिरमौर व शिमला मे बैशाख व जेठ माह मे सदियों से होते है Bishu
उपमंडल संगड़ाह के सबसे पुराने उत्सवों मे शामिल है बोड़ बिशु
संगड़ाह। सिरमौर जनपद की रियासतकालीन परंपराओं को संजोए रखने के लिए मशहूर गिरिपार क्षेत्र मे इन दिनों Bishu मेलों का दौर जारी है। Civil Subdivision संगड़ाह के बोड़ गांव मे शनिवार को आयोजित बिशु मेले मे Mahabhat का सांकेतिक युद्ध व सांस्कृतिक कार्यक्रम आकर्षक का केंद्र रहे। परम्परा के अनुसार पहला तीर चलने से बिशु मेले का शुभारम्भ होता है। कुछ दशक पहले तक क्षेत्र मे यह मेले मनोरंजन का मुख्य साधन थे। शनिवार को लोग तीर-कमान, लाठी, व डांगरे (फरसे) आदि के साथ पारम्परिक वाद्ययंत्रों की ताल पर एक दूसरे को चुनौती देने व नाचने की परंपरा निभाते देखे गए।गौरतलब है कि, ग्रेटर सिरमौर व Upper शिमला के अलावा साथ लगते उत्तराखंड के जौंसार क्षेत्र मे भी बैशाख व जेठ माह मे बिशु मेलों मे कुछ साल पहले तक शाठी व पाशी खेमों के बीच में होने वाले धोणू-शोरी यानी तीर कमान से महाभारत का सांकेतिक युद्ध अथवा थौऊड़े होते थे और दौरान कईं बार गैंगवार भी होती थी। अब केवल एक परंपरा निभाने अथवा मनोरंजन के लिए ग्रामीण एक-दूसरे पर तीर चलाते हैं। नियमानुसार केवल विशेष पौशाक अथवा सुथण पहनने वाले धनुर्धर की टांगों पर ही सूर्यास्त से पहले तक दूसरा योद्धा वार कर सकता है। खुद को कौरव का वंशज मानने वाले शाठी व पांडव वंश के कहे जाने वाले पाशी खेमों अथवा खुंदो द्वारा परंपरा के अनुसार इन मेलों में एक-दूसरे को युद्ध के लिए मैदान में ललकारा जाता है। कुल देवता की अनुमति के बाद जंग बाजा कहलाने वाले पारंपरिक वाद्य यंत्रों की ताल पर बिशु दल के सैकड़ों लोग धनुष-बाण व लाठी फरसे के साथ दूसरे खेमे को चुनौती देते हुए मैदान में पहुंचते हैं। बीते कुछ सालों में इन मेलों में काफी बदलाव आया है तथा सांस्कृतिक संध्याएं व खेलकूद प्रतियोगिताएं बिशु का मुख्य आकर्षण बन चुकी है। बहराल क्षेत्र के कई गांव में Bishu Mele आज भी Traditional अंदाज मे मनाए जाते जाते है, हालांकि कुछ जगह यह परम्परा समाप्त भी हो चुकी है।
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