SDM संगड़ाह ने किया अंधेरी बीशु मे खेलकूद व सांस्कृतिक कार्यक्रमों का शुभारंभ
संगड़ाह। उपमंडल संगड़ाह अथवा Greater Sirmaur के सबसे पुराने Bishu मेलों में शामिल अंधेरी बिशू मे Sports व Cultural कार्यक्रमों का शुभारंभ रविवार को SDM Sangrah डॉ विक्रम नेगी द्वारा किया गया। इस अवसर पर उन्होंने ग्रामीणों को सदियों पुरानी इस Tradition की परम्परा को कायम रखने के लिए बधाई दी। गौरतलब है कि, हिमाचल के सिरमौर व शिमला तथा उत्तराखंड के चकराता District के कई गांवों मे बिशू मेलों के दौरान आज भी Symbolic Mahabharat War होता है। कौरव-पांडवों के बीच हुए महाभारत के युद्ध की यादें ताजा करने वाले बिशू वैशाख व जेठ माह मे मनाए जाते है। इन मेलों में तीर कमान से होने वाला महाभारत का सांकेतिक युद्ध अथवा ठोडा नृत्य मुख्य आकर्षण रहता है। पांच दशक पूर्व तक हालांकि इन Fastivals में कईं बार शाठी व पाशी खेमों के बीच में होने वाले घौणू-शोरी अथवा Bow-Arch युद्ध के दौरान Gang War भी होती थी, मगर अब आम तौर पर केवल एक खेल अथवा मनोरंजन के लिए ग्रामीण एक-दूसरे पर तीर चलाते हैं। नियमानुसार केवल विशेष पौशाक अथवा सुथण पहनने वाले धनुर्धर की टांगों पर ही सूर्यास्त से पहले तक दूसरा योद्धा वार कर सकता है। खुद को कौरव का वंशज मानने वाले शाठी व पांडव वंश के कहे जाने वाले पाशी खेमों अथवा खुंदो द्वारा Tradition के अनुसार इन मेलों में एक-दूसरे को युद्ध के लिए जुब्बड़ मैदान में ललकारा जाता है।
संगड़ाह। उपमंडल संगड़ाह अथवा Greater Sirmaur के सबसे पुराने Bishu मेलों में शामिल अंधेरी बिशू मे Sports व Cultural कार्यक्रमों का शुभारंभ रविवार को SDM Sangrah डॉ विक्रम नेगी द्वारा किया गया। इस अवसर पर उन्होंने ग्रामीणों को सदियों पुरानी इस Tradition की परम्परा को कायम रखने के लिए बधाई दी। गौरतलब है कि, हिमाचल के सिरमौर व शिमला तथा उत्तराखंड के चकराता District के कई गांवों मे बिशू मेलों के दौरान आज भी Symbolic Mahabharat War होता है। कौरव-पांडवों के बीच हुए महाभारत के युद्ध की यादें ताजा करने वाले बिशू वैशाख व जेठ माह मे मनाए जाते है। इन मेलों में तीर कमान से होने वाला महाभारत का सांकेतिक युद्ध अथवा ठोडा नृत्य मुख्य आकर्षण रहता है। पांच दशक पूर्व तक हालांकि इन Fastivals में कईं बार शाठी व पाशी खेमों के बीच में होने वाले घौणू-शोरी अथवा Bow-Arch युद्ध के दौरान Gang War भी होती थी, मगर अब आम तौर पर केवल एक खेल अथवा मनोरंजन के लिए ग्रामीण एक-दूसरे पर तीर चलाते हैं। नियमानुसार केवल विशेष पौशाक अथवा सुथण पहनने वाले धनुर्धर की टांगों पर ही सूर्यास्त से पहले तक दूसरा योद्धा वार कर सकता है। खुद को कौरव का वंशज मानने वाले शाठी व पांडव वंश के कहे जाने वाले पाशी खेमों अथवा खुंदो द्वारा Tradition के अनुसार इन मेलों में एक-दूसरे को युद्ध के लिए जुब्बड़ मैदान में ललकारा जाता है।
कुल देवता की अनुमति के बाद जंग बाजा कहलाने वाले पारम्परिक वाद्ययंत्रों की ताल पर बीशू दल के सैंकड़ों लोग धनुष-बाण व लाठी-भालों के साथ दूसरे खेमे को चुनौती देते हुए Jubbar Ground में पहुंचते हैं। दल के मैदान-ए-जंग में पंहुचने पर लगता है जैसे यहां हजारों साल पुरानी परम्परा के अनुसार पर कोई धर्म युद्ध हो रहा है। पिछले तीन दशक से इन मेलों में काफी बदलाव आया है तथा सांस्कृतिक संध्याएं व खेलकूद प्रतियोगिताएं बिशू का मुख्य आकर्षण बन चुकी है। मेला बाजार में खरीदारी, मिठाई व फ़ास्ट फ़ूड तथा झूला झूलना भी बदलते परिवेश मेले का अभिन्न हिस्सा बन चुके है। कईं गांवों मे Bishu मेले की परम्परा समाप्त भी हो चुकी है और इसका 1 कारण पुराने जमाने मे इन मेलों के दौरान हुई 2 धड़ो की लड़ाईयां भी समझा जाता है।
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