पारम्परिक बुड़ेछू नृत्य, बैल पूजा व सास-दामाद दूज है त्यौहार का अहम हिस्सा
परोसे जाते हैं बिलोई, मूड़ा व धोरोटी आदि व्यंजन
सिरमौर जनपद की सदियों पुरानी लोक संस्कृति व परंपराओं को संजोए रखने के लिए मशहूर गिरिपार क्षेत्र में गुरुवार को दीपावली को पोड़ोई, शुक्रवार को दूज तथा शनिवार को तीज पर्व के नाम से मनाया गया। इस दौरान क्षेत्र के विभिन्न गांवों में बुड़ेछू लोक नृत्य हुआ तथा पारम्परिक व्यंजन परोसे गए। पोड़ोई, दूज व तीज पर्व पर ग्रेटर सिरमौर के कईं गांव में सांस्कृतिक संध्याओं का आयोजन हुआ जिसमें से कुछ जगहों पर रामायण का मंचन किया गया।
गिरीपार के अंतर्गत आने वाले उपमंडल संगड़ाह, शिलाई व राजगढ़ की 130 के करीब पंचायतों में दिवाली जरा अलग अंदाज में सप्ताह भर मनाई जाती है। विशेष समुदाय से संबंध रखने वाले पारंपरिक बुड़ेछू कलाकारों द्वारा इस दौरान होकू, सिंघा वजीर, चाय गीत, नतीराम व जगदेव आदि वीर गाथाओं गायन किया जाता है। उक्त कलाकारों फास्ट बीट के सिरमौरी गीतों पर बूढ़ा नृत्य भी किया जाता है।
सदियों से क्षेत्र में केवल दिवाली तथा बूढ़ी दिवाली के दौरान ही बुड़ेछू नृत्य होता है तथा इसे बूढ़ा अथवा बुड़ियाचू नृत्य भी कहा जाता है। स्थानीय लोग बुड़ेछू दल के सदस्यों को नकद बक्शीश के अलावा घी के साथ खाए जाने वाले पारंपरिक व्यंजन भी परोसते हैं तथा इस परम्परा को ठिल्ला कहा जाता है। क्षेत्र में दीपावली को चौदश, अमावस, पोड़ोई, दूज, तीज, चौथ व पंचमी के नाम से सप्ताह भर मनाया जाता है। दीपावली के दूसरे दिन क्षेत्र में जहां बैलों की पूजा की जाती है, वहीं भैया दूज पर दामाद अपनी सास को उपहार देकर उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। बहरहाल क्षेत्र में सदियों से इस तरह दीपावली मनाने की परंपरा कायम है। एक माह बाद आने वाली अमावस्या से ग्रेटर सिरमौर कईं गांव में सप्ताह भर चलने वाली बूढ़ी दिवाली मनाई जाती है।
Tradition ....
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