DC सिरमौर ने शुरू करवाई पंजीकरण प्रक्रिया
(File Phots)
सिरमौर की समृद्ध लोक संस्कृति व परम्पराओं की पहचान डांगरा व लोईया को पेटेंट करवाया जाएगा, ताकि इसकी मौलिकता एवं पारंपरिकता को एक नई पहचान मिल सके। उपायुक्त सिरमौर ललित जैन ने बुधवार को इस बारे जानकारी देते हुए कहा कि, सिरमौरी पौशाक लोईया तथा शस्त्र डांगरा को पेटेंट करवाने के लिए उद्योग विभाग के माध्यम से प्रक्रिया आरंभ कर दी गई है। उन्होने कहा कि, हिमाचल पेटेंट सूचना केंद्र की स्थापना हिमाचल प्रदेश विज्ञान प्रौद्योगिकी एवं पर्यावरण परिषद की नोडल एजेंसी हिमकोस्ट के तत्वाधान में की गई है। इसके द्वारा किसी भी वस्तु को भौगोलिक संकेत अर्थात जीआई टैग प्रदान करने के लिए मामला रजिस्ट्रार भौगोलिक संकेत चैन्नई के साथ उठाया जाता है। जिलाधीश ने कहा कि, सिरमौरी वस्त्र लोईया व शस्त्र डांगरा को पेटेंट करवाने के लिए हिमकोस्ट के साथ पत्राचार आंरभ कर दिया गया है तथा इनकी परम्परागत व मौलिकता के बारे जानकारी उपलब्ध करवाई जा रही है ।
उपायुक्त ने कहा कि, लोईया सिरमौर जिला के ट्रांसगिरि क्षेत्र की पहचान तथा पारम्परिक वेशभूषा है, जिसे विशेषकर सर्दियों में गिरिपारवासी शौक के साथ पहनते हैं। उपायुक्त ललित जैन ने कहा कि, सिरमौर जिला के लोग बदलते परिवेश के बावजूद भी भेड़-बकरियों का पालन कर उनकी ऊन को घर में चूल्हे के पास बैठकर कातते है। ऊन की पट्टी तैयार करने के बाद खड्डी पर लोईया तैयार किया जाता है। सिरमौरी लोईया बनाने वाले कईं जुलाहे के परिवार भी गिरिपार क्षेत्र में उपलब्ध है। अतीत में लोईया को हाथ के साथ तैयार किया जाता था जिसमें काफी समय लग जाता था। वर्तमान में लोईया को मशीन से भी तैयार किया जाता है। उन्होने कहा कि लोईया ऐसा ऊन का उपयोगी कोट है जो कड़ाके की सर्दी में व्यक्ति के भीतर गर्मी संजोए रखता है।
उपायुक्त ने कहा कि, लोईया और डांगरा एक दूसरे के पर्याय है। डांगरा एक ऐसा शस्त्र है जो आत्मरक्षा के साथ-साथ घरेलू कामों विशेषकर पशुओं के लिए चारा काटने में भी इस्तेमाल किया जाता है। उन्होने बताया कि, डांगरा को भगवान परशुराम के कुल्हाड़े का प्रतीक भी माना जाता है, क्योंकि भगवान परशुराम भी ऐसा फरसा ही धारण करते थे। उन्होने कहा कि डांगरा उत्तम क्वालिटी के लोहे से फरसे की आकृति में बना होता है जिसे गिरीपार क्षेत्र में लोग कालान्तर में युद्धकाल और वर्तमान में ठोडा खेल के दौरान लोग हाथ में लेकर नृत्य भी करते हैं। उन्होने कहा कि, सिरमौर का लोईया जहां जिले के लोगों की सादगी का प्रतीक है, वहीं डांगरा समाज में दुष्ट प्रवत्तियों के दमन के लिए अभियान का भी प्रतीक माना जाता है। उपायुक्त ने कहा कि, सिरमौर जिला में लोइया व डांगरा अतिथि सत्कार के रूप में भी भेंट करने की भी परंपरा है।
उपायुक्त ने जानकारी दी कि किसी भी उत्पाद को भौगोतिक चिन्ह अर्थात जीआई टैग का दर्जा प्राप्त करने के लिए उसका संबधित क्षेत्र में उत्पादन अथवा निर्माण और प्रसंस्करण होना आवश्यक है। उन्होने कहा कि जिस प्रकार हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा की पेंटिग, चम्बा का रूमाल, दार्जिलिंग चाय, तिरूपति का लडडू, कश्मीर का पशमीना इत्यादि को जीआई टैग मिला है, उसी तर्ज पर सिरमौर का लोईया और डांगरा को जीआई टैग प्रदान करने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं।
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