Greater सिरमौर में माघी त्यौहार पर कटेंगे 40 हजार बकरे

केवल गिरिपार के हिंदुओं द्वारा मनाया जाता है यह अनूठा पर्व

बकरों की ख़रीद-फरोख्त मे व्यस्त हुए क्षेत्रवासी
 पारंपरिक व्यंजन "मूड़ा" के लिए गैंहू, चावल, सूखे मेवे, तिल व चौलाई को तैयार करने में जुटी महिलाएं

 सिरमौर जनपद की सदियों पुरानी लोक संस्कृति व परंपराओं को संजोए रखने के लिए मशहूर करीब ढ़ाई लाख की आबादी वाले गिरिपार क्षेत्र के बाशिंदे इन दिनों माघी त्यौहार के लिए बकरों की खरीद-फरोख्त मे जुट गए हैं। बर्फ से प्रभावित रहने वाली गिरिपार क्षेत्र की चार दर्जन के करीब पंचायतों मे हालांकि दिसंबर माह की शुरुआत से Nonvegetarian लोग अन्य दिनों से ज्यादा मीट खाना शुरु कर देते हैं, मगर 10 से 12 जनवरी तक चलने वाले माघी त्यौहार के दौरान क्षेत्र की 130 पंचायतों के मांसाहारी परिवारों द्वारा बकरे काटे जाने की परंपरा भी अब तक कायम है। 

 Greater Sirmaur के अंतर्गत आने वाले नागरिक उपमंडल संगड़ाह, शिलाई व राजगढ़ मे हालांकि 95 फीसदी के करीब किसान परिवार पशु पालते हैं मगर पिछले चार दशकों मे इलाके के युवाओं का रुझान सरकारी नौकरी, नकदी फसलों व बिजनेस की और बढ़ने से क्षेत्र मे बकरियों को पालने का चलन घटा है। गिरिपार अथवा ग्रेटर सिरमौर मे इन दिनों लोकल बकरों की कमी के चलते क्षेत्रवासी देश की बड़ी मंडियों से बकरे खरीदते हैं। क्षेत्र मे मीट का कारोबार करने वाले व्यापारी इन दिनों राजस्थान, सहारनपुर, नोएडा व देहरादून आदि मंडियों से क्षेत्र में बड़े-बड़े बकरे उपलब्ध करवा रहे हैं। बकरों के अलावा कुछ लोग भेड़ अथवा खाड़ू आदि भी काटते हैं। पिछले कुछ वर्षों मे हालांकि इलाके के डेढ़ दर्जन के करीब गांव मे लोग बकरे काटने की परंपरा छोड़ चुके हैं तथा शाकाहारी परिवारों की संख्या भी बड़ी है।
 इसके बावजूद माघी त्यौहार मे हर घर मे बकरा काटने की परंपरा अब भी 90 फीसदी गांव मे कायम है। ग्रेटर सिरमौर की 130 के करीब पंचायतों मे साल के सबसे Glorious व खर्चीले कहे जाने वाले इस त्यौहार के दौरान हर पंचायत मे औसतन सवा तीन सौ करीब बकरे कटते हैं। आगामी 10 जनवरी से शुरू होने वाले इस त्यौहार को खड़ीआंटी अथवा अस्कांटी, डिमलांटी व उतरान्टी अथवा होथका आदि नामों से 3 दिन तक मनाया जाता है। क्षेत्र के विभिन्न स्वयंसेवी संगठनों के सर्वेक्षण के मुताबिक गिरीपार मे लोहड़ी के दौरान मनाए जाने वाले Maghi Tyohar पर हर वर्ष करीब 40,000 बकरे कटते हैं तथा एक बकरे की औसत कीमत 15000 रखे जाने पर इस त्यौहार के दौरान यहां करीब 60 करोड़ रुपए के बकरे कटेंगे। क्षेत्र से संबंध रखने वाले उच्च पदों पर कार्यरत प्रशासनिक व सैन्य अधिकारी, राजनेताओं, डॉक्टर, वकील, पत्रकारों व बिजनेसमैन आदि प्रतिष्ठित लोगों मे से भी अधिक्तर के घरों मे भी बकरे कटते हैं। 

  क्षेत्र की ऐसी ही परम्पराओं को आधार मानकर हाटी समिति 1960 के दशक से गिरिपार को जनजातीय दर्जा देने की मांग कर रही है। महंगे बकरे खरीदने मे अक्षम व अपनी बकरियां न पालने वाले कुछ लोग मीट की दुकानों से ताजा मीट लाकर इस त्योहार को मनाने लगे हैं। क्षेत्र मे माघी पर कटने वाले बकरे का मीट हल्दी, नमक व धूंए से परंपरागत ढंग से संरक्षित किया जाता है तथा अधिकतर लोग इसे फ्रिज की वजाय कम तापमान वाली जगह मे सुखाकर पूरे माघ महीने खाते है। क्षेत्र की कुछ NGO अथवा सुधारवादी संगठनों द्वारा हालांकि इस त्यौहार अथवा परंपरा को समाप्त करने की कोशिश भी गत दो दशकों से की जा रही है, मगर अधिकतर लोग हिमाचल के इस ठंडे इलाके में सर्दियों में मीट खाना स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होने का तर्क देकर इसे बंद करने के पक्ष में नहीं है। 

बकरों की खरीदारी के अलावा माघ में मेहमानों को दिए जाने वाले विशेष व्यंजन मूड़ा के लिए भी गैंहू, चावल, चौलाई, अखरोट, भांग बीज व तिल आदि को तैयार करने में भी लोग अथवा महिलाएं व्यस्त हो गई है। साल के सबसे शाही व खर्चीले कहलाने वाले माघी त्यौहार के बाद पूरे माघ मास अथवा फरवरी के मध्य तक क्षेत्र में मेहमान नवाजी का दौर चलता है। इस दौरान मांसाहारी लोगों को जहां डोली, खोबले, राढ़ मीट, गुल्टी, सालना व सिड़कू आदि पारंपरिक सिरमौरी व्यंजन परोसे जाते हैं, वहीं वेजीटेरियन Guests के लिए धोरोटी, मूड़ा, पूड़े, पटांडे, सीड़ो व तेलपाकी आदि घी के साथ खाए जाने वाले पकवान बनाए जाते हैं। बहरहाल क्षेत्र मे माघी त्यौहार के लिए बकरों की खरीदारी का दौर जोरों पर है तथा मीट की दुकान चलाने वाले इन दिनों जिंदा बकरे बेचकर काफी मुनाफा कमा रहे हैं।

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