गुगावल पर्व मे लोहे की जंजीरों के कोरड़े से पिटते हैं भक्त

Greater Sirmaur की डेढ़ सौ के करीब पंचायतों मे मनाया गया त्यौहार 

सभी जात व धर्म के लोगों मे बंटता है रोट प्रसाद

संगड़ाह। सिरमौर जिला के गिरीपार क्षेत्र में यूं तो हिंदुओं के कईं मुख्य त्यौहार अलग अंदाज में मनाएं जाते हैं, मगर क्षेत्र में मनाई जाने वाली Gugawal पर भक्तों द्वारा खुद को लोहे की जंजीरों के कोरड़े से पीटे जाने की धार्मिक परंपरा काफी रोमांचक समझी जाती है। गुगा नवमी की पूर्व संध्या पर माड़ी कहलाने वाले एक मंजिला गूगा मंदिरों में भक्ति गीतों के साथ शुरू होने वाला उक्त पर्व नवमी की शाम Sunset तक परंपरा के अनुसार मनाया जाता है। करीब 3 लाख की आबादी वाले Greater Sirmaur के उपमंडल संगड़ाह, शिलाई व राजगढ़ सहित 150 के करीब पंचायतों में शुक्रवार रात के बाद शनिवार प्रातः करीब 11 बजे से यह त्यौहार शाम सूरज ढलने तक चला। इस दौरान क्षेत्र के लगभग सभी बड़े गांव में दो दर्जन के करीब गूगा भक्त अथवा श्रद्धालु खुद को लोहे की जंजीरों से पीटते हैं। लोहे की जंजीरो से बने गुगा पीर के अस्त्र समझे जाने वाले कौरड़े का वजन आमतौर पर 2 किलो से 10 KG तक होता है, जिसे आग अथवा धूनी में गर्म करने के बाद श्रद्धालु इससे खुद पर दर्जनों वार करते हैं। गुगावल शुरू होने पर गारुड़ी कहलाने वाले पारंपरिक लोक गायकों द्वारा छड़ियों से बजने वाले विशेष डमरु की ताल पर Guga Peer, शिरगुल देवता, रामायण व महाभारत आदि वीर गाथाओं का गायन किया जाता है।

गुगा पीर स्तूति अथवा शौर्य गान शुरू होते ही भक्त खुद को कोरड़ा अथवा छड़ी कहलाने वाली जंजीरों से पीटना शुरु कर देते हैं तथा इस दौरान कईं भक्त लहूलुहान अथवा घायल भी होते भी देखे जाते हैं। मान्यता के अनुसार शरीर मे देवात्मा के प्रवेश के चलते दर्द नही होता और न ही घाव दुखते हैं। गूगावल Giripar का एकमात्र त्यौहार है, जो जातिगत व धार्मिक बंधनों से ऊपर उठकर मनाया जाता है तथा रोट कहलाने वाला देवता का प्रसाद स्वर्ण व दलितों में बराबर बिना छुआछूत व भेदभाव के बांटा जाता है। गूगा नवमी पर जहां श्रद्धालु खुद को लोहे की चेन व नुकीली पत्तियों से बने कोरड़े से पीटते हैं, वहीं महासू पंचमी पर भक्त आग में कूदते हैं। शनिवार को क्षेत्र मे यह Religious Festivals Traditional अंदाज़ मे संपन्न हुआ।

 


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