बुड़ेछू Dance, बैल पूजन व सास-दामाद दूज है Festival का अहम हिस्सा
पोड़ोई पर्व पर गौवंश को परोसे गए पकवान
संगड़ाह। सिरमौर जनपद की सदियों पुरानी लोक संस्कृति व Traditions को संजोए रखने के लिए मशहूर गिरिपार क्षेत्र में यूं तो हिंदुओं के कईं त्यौहार अलग अंदाज में मनाए जाते हैं, मगर यहां सप्ताह भर चलने वाली दिवाली तथा एक माह बाद आने वाली Dudhi Dyali हमेशा चर्चा में रही है। क्षेत्र में दीपावली से एक दिन पूर्व चौदश से उक्त Festival शुरू होता है तथा इसके बाद अवांस, पोड़ोई, दूज व तीज आदि नाम से सप्ताह भर चलता है। रविवार को चौदश से इलाके में त्यौहार शुरू हो चुका है। दीपावली को अंवास के नाम से मनाए जाने व लक्ष्मी पूजा के बाद अगले दिन मनाए जाने वाले पोड़ोई पर्व पर क्षेत्र मे बैलों अथवा गोवंश की पूजा कर उन्हें पारम्परिक व्यंजन अथवा पकवान परोसे जाते हैं। इस दौरान इलाके के विभिन्न गांवों में बुड़ेछू लोक नृत्य भी हुआ। दिवाली के दौरान अलग-अलग दिन अस्कली, धोरोटी, पटांडे, सीड़ो व तेलपकी आदि पारम्परिक व्यंजन परोसे जाते हैं। दीपावली के अगले रोज पोड़ोई, दूज, तीच व चौथ आदि पर Greater Sirmaur के कईं गांव में सांस्कृतिक संध्याओं का आयोजन किया जाता है, जिसमें से कुछ जगहों पर Ranayan व महाभारत का मंचन किया जाता है।गिरीपार के अंतर्गत आने वाले उपमंडल संगड़ाह, शिलाई व राजगढ़ की 154 पंचायतों में Diwali को आज भी इसी तरह पारम्परिक अंदाज में मनाया जाता है। क्षेत्र में कुछ दशक पहले तक बिना पटाखे चलाए Eco Friendly ढंग से यह उत्सव मनाया जाता था, हालांकि अब देश के अन्य हिस्सों की देखा-देखी में आतिशबाजी दीपावली हिस्सा बन गई है। विशेष समुदाय से संबंध रखने वाले पारंपरिक बुड़ेछू कलाकारों द्वारा इस दौरान होकू, सिंघा वजीर, चाय गीत, नतीराम व जगदेव आदि वीर गाथाओं गायन किया जाता है। उक्त कलाकारों द्वारा Fast Beat के सिरमौरी गीतों पर Dudechhu Dance भी किया जाता है। सदियों से क्षेत्र में केवल दीपावली अथवा बड़ी दिवाली तथा बूढ़ी दिवाली के दौरान ही बुड़ेछू नृत्य होता है तथा इसे बूढ़ा अथवा बुड़ियाचू नृत्य भी कहा जाता है। स्थानीय लोग बुड़ेछू दल के सदस्यों को नकद बक्शीश के अलावा घी के साथ खाए जाने वाले पारंपरिक व्यंजन भी परोसते हैं तथा इस परम्परा को ठिल्ला कहा जाता है। भैया दूज पर दामाद अपनी सास को Gift अथवा भेंट देकर उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। बहरहाल क्षेत्र में सदियों से इस तरह दीपावली मनाने की परंपरा कायम है। एक माह बाद आने वाली अमावस्या से ग्रेटर सिरमौर कईं गांव में सप्ताह भर चलने वाली बूढ़ी दिवाली मनाई जाती है तथा कुछ गांवों में इसे मशराली के नाम से भी मनाया जाता है। ग्रेटर सिरमौर अथवा गिरिपार में दीपावली के अलावा लोहड़ी, गूगा नवमी, ऋषि पंचमी व वैशाखी आदि त्यौहार भी शेष हिंदोस्तान से अलग अंदाज मे मनाए जाते हैं। इलाके की ऐसी ही परम्पराओं व विषम भौगोलिक परिस्थितियों आदि को आधार मानकर गत 14 सितंबर को केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा Giripaar की करीब 1.60 लाख की स्वर्ण आबादी को Shedule Tribe Status संबंधी मंजूरी दी जा चुकी है।
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