औषधीय गुणों से भरपूर कचनार पर आई बहार



 कचनार पर आई बहार 

गर्मियों में सब्जी व रायता बनाने के लिए होता है इस्तेमाल  

औषधीय गुणों से भरपूर कचनार के पेड़ों पर इन दिनों आई बाहर से न केवल क्षेत्र के जंगल व घासनियां आकर्षक नजर आ रहे हैं, बल्कि इसके फूल व कलियों से लोगों को निशुल्क बेहतरीन सब्जी, रायता व अचार भी मिलता है। उपमंडल संगड़ाह के मध्यम ऊंचाई वाले जंगलों में कचनार अथवा बाहिनिया पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है। स्थानीय बोली में करयाल के नाम से जाने जाने वाले इस पेड़ का वैज्ञानिक नाम बाहिनिया है। इलाके में कचनार की आधा दर्जन से अधिक उपजातियां पाई जाती है, जिनमें सफेद, गुलाबी, लाल व हल्के नीले रंग के फूलों वाले करयाल शामिल है। सदियों से लोग न केवल सब्जी, अचार, रायता व सजावट के लिए कचनार का इस्तेमाल कर रहे हैं, बल्कि विभिन्न बीमारियों के लिए भी इसके फूल, छाल व जड़ का इस्तेमाल किया जाता है। रक्त विकार, गर्मी अथवा लू लगने, फोड़े, फुंसी, दाद व खुजली आदि त्वचा संबंधी रोगों, जोड़ों के दर्द, गले का दर्द व खांसी-जुखाम आदि बिमारियों के लिए भी करयाल रामबाण दवा समझा जाता है। क्षेत्र के कईं बुजुर्ग व वैद उक्त बीमारियों के लिए करयाल की छाल, फूल, कलियां व जड़ का शहद, पानी तथा चावल के पानी के साथ सेवन करनेे की सलाह देते हैं। क्षेत्र की लोक संस्कृति से भी बाहिनीया वरजेटा का पुराना नाता रहा है तथा इलाके के कईं लोकगीतों व लोककथाओं में भी इसके महत्व व सुंदरता का बखान है। भारत के अलावा श्रीलंका, पाकिस्तान, चीन, म्यानमार व अमेरिका आदि देशो के मध्य ऊंचाई वाले हिस्से में भी यह सुंदर फूल वाला पेड़ पाया जाता है। सामान्यता करयाल के पेड़ की ऊंचाई 30 फुट के करीब रहती है। इलाके के बर्फ से प्रभावित अथवा अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों में इन दिनों जहां बुरास अथवा रोडोडेंड्रॉन आकर्षण का विषय बना है, वही मध्यम ऊंचाई वाले इलाकों में कचनार पर आई बहार लोगों को आकर्षित कर रही है। क्षेत्र में इन दिनों आ रहे सैलानी व कईं स्थानीय युवकों को आए दिन करयाल के साथ फोटो खिंचवाते अथवा सैल्फी लेते देखा जा सकता है।

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