क्षेत्र मे बिशुड़ी के नाम से दो दिन मनाया जाता है त्यौहार
शिरगुल महाराज मंदिर चूड़धार के कपाट खुले
महीने भर जलता है बीशु मेलों का दौर
संगड़ाह। सिरमौर जनपद की सदियों पुरानी लोक संस्कृति व परंपराओं के संरक्षण के लिए मशहूर गिरिपार क्षेत्र में बैशाखी पर झूले लगाए जाने व कुल देवता के पूजन की परंपरा सदियों से कायम है। क्षेत्र में यह पर्व को दो दिन मनाया जाता है। रविवार सांय पारम्परिक वाद्ययंत्रों की ताल पर रस्सा-कशी व पींग फांदने की रस्म के बाद एक बार फिर सोमवार सुबह इलाके के पेड़ों पर झूले लगे। बाबड़ी नामक विशेष घास से बनाए जाने वाली मोटी रस्सी के झूलों पर न केवल बच्चे बल्कि अन्य लोग भी कम से कम एक बार झूलना अच्छा शगुन समझते है। करीब 3 लाख की आबादी वाले गिरिपार क्षेत्र की 154 पंचायतों में बैसाखी पर लोग कुल देवता को अनाज चढ़ाते हैं तथा इस दिन देवता की विशेष पूजा की जाती है। वैशाखी के दूसरे दिन को इलाके में बिशु रो साजो के नाम से मनाया जाता है। इस दिन से क्षेत्र में महीने भर चलने वाला बिशु मेले का दौर भी शुरू हो जाता है और राजगढ़ में रविवार को तीन दिवसीय शिरगुल देवता बैशाखी मेले का शुभारंभ DC Sirmaur ने किया। बैसाखी के दूसरे दिन बिशु रो साजो पर परम्परा के चलते शिरगुल महाराज मंदिर चूड़धार के कपाट भी सर्दियों में Snowfall होने तक के लिए खुल जाते हैं, हालांकि सेवा समिति द्वारा यहां भंडारा अगले माह से शुरु किया जाएगा। क्षेत्र के विकास खंड संगड़ाह, शिलाई व राजगढ़ आदि में कईं स्थानों पर Bishu मेलों के दौरान तीर कमान से महाभारत का सांकेतिक युद्ध होता है। वैशाखी की पूर्व संध्या पर क्षेत्र के विभिन्न गांव में सामूहिक रुप से एक बकरा काटने की भी परंपरा है तथा इसे बिशवाड़ी कहा जाता है। कुछ अरसा पहले तक क्षेत्र में कईं लोग बिशुड़ी पर शिकार भी करते थे। गिरिपार मे न केवल बैशाखी को अलग अंदाज में मनाया जाता है, बल्कि यहां लोहड़ी के दौरान जहां एक साथ 40 हजार के करीब बकरे कटते हैं, वही गुगा नवमी पर भक्त खुद को लोहे की जंजीरों से पीटते हैं। भैया दूज को सास-दामाद दूज के रुप में मनाया जाता है, तो ऋषि पंचमी पर श्रद्धालु आग से खेलते हैं। बहरहाल गिरिपार मे आज भी बीशुड़ी कहलाने वाली Baishakhi पर बाबड़ी के झूले लगाने व देवता की अनाज चढ़ाकर पूजा करने की सदियों पुरानी परंपरा कायम है।इस दिन से क्षेत्र में महीने भर चलने वाला बिशु मेले का दौर भी शुरू हो जाता है और राजगढ़ में रविवार को तीन दिवसीय शिरगुल देवता बैशाखी मेले का शुभारंभ DC Sirmaur ने किया। बैसाखी के दूसरे दिन बिशु रो साजो पर परम्परा के चलते शिरगुल महाराज मंदिर चूड़धार के कपाट भी सर्दियों में Snowfall होने तक के लिए खुल जाते हैं, हालांकि सेवा समिति द्वारा यहां भंडारा अगले माह से शुरु किया जाएगा। क्षेत्र के विकास खंड संगड़ाह, शिलाई व राजगढ़ आदि में कईं स्थानों पर Bishu मेलों के दौरान तीर कमान से महाभारत का सांकेतिक युद्ध होता है। वैशाखी की पूर्व संध्या पर क्षेत्र के विभिन्न गांव में सामूहिक रुप से एक बकरा काटने की भी परंपरा है तथा इसे बिशवाड़ी कहा जाता है। कुछ अरसा पहले तक क्षेत्र में कईं लोग बिशुड़ी पर शिकार भी करते थे। गिरिपार मे न केवल बैशाखी को अलग अंदाज में मनाया जाता है, बल्कि यहां लोहड़ी के दौरान जहां एक साथ 40 हजार के करीब बकरे कटते हैं, वही गुगा नवमी पर भक्त खुद को लोहे की जंजीरों से पीटते हैं। भैया दूज को सास-दामाद दूज के रुप में मनाया जाता है, तो ऋषि पंचमी पर श्रद्धालु आग से खेलते हैं। बहरहाल गिरिपार मे आज भी बीशुड़ी कहलाने वाली Baishakhi पर बाबड़ी के झूले लगाने व देवता की अनाज चढ़ाकर पूजा करने की सदियों पुरानी परंपरा कायम है।
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